सलमान की एक फ़िल्म थी, “Veer (2010)“। इस फ़िल्म में उन्होने Animal sacrifice के लिए बकरे की गर्दन काटने के बजाए उसके गले की रस्सी काटकर उसे आज़ाद कर दिया था। और साथ ही एक डायलॉग भी बोला था। Dialog तो Exactly मुझे याद नहीं (आप ऊपर दिये हुए फ़िल्म के एक इस दृश्य में उसे सुन सकते हैं) अब इतना जरूर कह सकता हूँ कि जिसने भी फ़िल्म में ये सीन देखा था उसने उस समय वाह-वाह जरूर किया था। ऐसा ही एक सीन “बाहुबली: द बिगनिंग (2015)” के पहले भाग में भी है जिसमें प्रभास ने Animal sacrifice के जानवर की बलि देने से इनकार कर दिया। और अपने हाथ का रक्त देवी माँ को अर्पित करके कहा कि:-
“देवी माँ को खुश करना है, तो किसी निर्दोष की बलि क्यों? मेरा उबलता रक्त समर्पित है”।
Bahubali: The Beginning – (2015)
इस दृश्य पर काफ़ी देर तक सिनेमा हाल सीटियों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था।
जब धोनी ने अपने कुलदेवता को बलि दी थी
एक बार T20 वर्ल्ड कप जीतने के बाद धौनी ने अपने कुलदेवता को बलि चढ़ाई थी, जिस पर काफी बवाल मचा था और धौनी पर केस वगैरह भी हो गया था। मगर शायद ही किसी ने Sacrifice के नाम पर धौनी का समर्थन किया हो। बाद में फिर धौनी ने भी इस मामले को ज्यादा तूल नहीं दिया था।
उपरोक्त में से कोई भी उदाहरण अगर धर्म विशेष से सम्बंधित होते तो शायद बड़का वाला बवाल धरा था। कुर्बानी के समर्थन में धर्म विशेष के लोग सड़कों पर आ जाते।
आदिमानव काल या वैदिक काल का हवाला देकर लोग कितना भी बलि प्रथा और कुर्बानी को चाहे जितना Defend करने की कोशिश कर लें। मगर एक बात तो तय है कि ना तो ये आदिमानव काल है ना ही वैदिक काल। आज दुनिया काफी आगे बढ़ चुकी है तो यहां कम से कम धर्म के नाम पर बलि देना अमानवीयता ही होगी। धर्म विशेष में तो कुर्बानी का और भी क्रूर और वीभत्स रूप है। जिसमें निरह जानवर को धीरे-धीरे बड़ी बेरहमी से जीबह किया जाता है जिसे हलाल करना कहते हैं और ये तब और खेद पूर्ण हो जाता है जब ये काम बच्चों की मौजूदगी में किया जाता है। ये हलाल करने की प्रक्रिया ही हराम लगती है।
असल में क्या है, कि जो चीजें समाज में स्वीकार्य नही होती है
उसे अक्सर लोग धर्म का लबादा पहना कर धर्म से जोड़कर अपना हित साध लेते हैं।
देवताओं के नाम पर Animal sacrifice करना, शराब चढ़ाना इसी का एक हिस्सा है।
ये प्रथा आज बेहद हास्यास्पद है
मनोकामना पूर्ति के लिये देवी-देवताओ को बलि चढ़ाना आज के युग में तो बेहद हास्यास्पद है।
भला बताइये कि कौन सा देवी-देवता ऐसा होगा जो अपने ही द्वारा सृजित किये गए एक प्राणी से कहेगा
कि तुम उसके द्वारा ही सृजित दूसरे प्राणी की मुझे कुर्बानी दे दो।
भला बताइये, ऐसी कौन सी माँ होगी जो अपने एक बच्चे से कहे कि-
“तुझे अगर अपनी मुराद पूरी करवानी हो, तो मेरे दूसरे बच्चे को मार दो।
ईश्वर को खुश करना बेवकूफ़ी है
सिर्फ जीभ के स्वाद या भगवान के नाम पर जानवरों को मारना सभ्य समाज की निशानी कदापि नहीं हो सकती। अगर मांसाहार बेहद जरुरी हो तो कम से कम इस बात का तो ख्याल रखा ही जाना चाहिए कि मरने वाले जानवरों को कम से कम दर्द हो उसे तड़पा-तड़पा कर ईश्वर को खुश करना एक बेवकूफ़ी ही होगी क्योंकि ईश्वर अगर है तो वो भी उसकी चीख़ से खुश नही होगा, उसे भी दर्द ही होगा। और वैसे भी कुर्बानी अपने अंदर के पशुत्व की देनी चाहिये ना की किसी मूक पशु की।