हिन्दू घरों में आपको बचपन से Bhagwan और देवी-देवताओं की पूजा करना बताया व सिखाया जाता है। इन्हीं विचारों और पूजा पद्धति को सीखते आप बड़े होते हैं। बड़े होने पर आपकी तर्कशीलता भी बड़ी हो चुकी होती है, लेकिन जिस मन के अंदर इस तरह के संस्कारिक बीज़ बचपन में डाल दिये जाते हैं, वो बड़े हो कर कर्मकांडी बन जाते हैं। तार्किकता यहाँ काम नहीं करती क्योंकि भक्ति रस अब आपके रोम-रोम में बस चुका है। सभी इसी तरह अलग-अलग तरीके से भगवान एवं धर्म से जुड़े हुए कर्मकांड सीखते हुए बड़े होते हैं। लेकिन बड़े हुए बहुत से लोग अभी भी ये नहीं जानते कि Bhagwan Kise Kaha Jata Hai?
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Bhagwan की परिभाषा और पात्रता मापदंड
Bhagwan शब्द संस्कृत के भगवत शब्द से लिया गया है। भगवान का अर्थ होता है- जितेंद्रिय। ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी पांचों इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो या जिसकी पंचतत्वों पर पकड़ हो उसे भगवान कहते हैं। जो व्यक्ति पूर्णत: मोक्ष प्राप्त कर चुका हो और अपने जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर कहीं भी जन्म लेकर कुछ भी करने की क्षमता रखता हो वह Bhagwan है।
जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान को प्राप्त व्यक्ति को तीर्थंकर या अरिहंत कहते हैं। बौद्ध संबुद्ध कहते हैं वैसे ही हिन्दू भगवान कहते हैं। भगवान शब्द का उपयोग विष्णु और शिव के अवतारों के लिए किया जाता है। इस शब्द का स्त्रीलिंग भगवती होता है। भगवती शब्द का उपयोग माँ दुर्गा के लिए भी किया जाता है। इसे ही भागवत मार्ग कहा गया है।
भगवान का अर्थ
Bhagwan Kise Kaha Jata Hai? भगवान शब्द पांच तत्वों से मिल कर बना है। इसे सन्धि विच्छेद भी कहते हैं-
(भ् + अ + ग् + अ + व् + आ + न् + अ) यानि कि-
भ = भूमि
अ = अग्नि
ग = गगन
वा = वायु और
न = नीर
यहाँ सबसे खास ध्यान देने वाली बात जिस में लोग भेद नहीं कर पाते हैं, बस मानने में विश्वास रखते हैं। जबकि धार्मिक व्यापार का सारा खेल इसी पर टिका है। वो भगवान को ईश्वर तुल्य समझते हैं इसीलिए यह शब्द ईश्वर, परमात्मा या परमेश्वर के लिए भी उपयोग किया जाता है, लेकिन यह उचित नहीं है। भगवान का अर्थ ईश्वर नहीं होता, जितने भी भगवान हैं वे ईश्वर कदापि नहीं है। राम, कृष्ण और बुद्ध आदि ईश्वर नहीं थे। और यहाँ तक कि ब्रहमा, विष्णु, महेश भी ईश्वर नहीं हैं, ईश्वर या परमेश्वर सिर्फ संसार की सर्वोच्च सत्ता को कहा जाता हैं। और कड़वा सच यह है कि जिसके बारे में आज भी किसी को कुछ पता नहीं है।
क्या कण-कण में भगवान का वास हैं?
यहां ऊपर बताई गयी बातें अगर आपने पढ़ ली होंगी तो कण-कण में भगवान हैं! इस भ्रम को आप समझ गए होंगे। आइये इसे थोड़ा और विस्तार से समझते हैं।
सनातन धर्म में बहुत पुराना Concept था कि ‘कण-कण में भगवान व्याप्त हैं’। काफी पहले इस पंक्ति पर फिल्म वालों ने ‘कण-कण में भगवान’ नाम की एक पूरी फिल्म बना डाली थी। लगता इस पंक्ति से कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो जाती होंगी इसलिए अब यह Concept ज्यादा प्रचलन में नहीं है।
चूंकि इस Concept को अन्य धर्म वाले यह मानने को तैयार नहीं होते होंगे कि दूसरे धर्म वालों के घरों, पूजास्थलों में भगवान का वास भी हो सकता है। तो अन्य धर्म के मानने वाले दुनिया के ज्यादातर कणों में भगवान का अस्तित्व मानने को तैयार नहीं होते होंगे। अब इसमें जाति, वर्ण, नस्ल, राष्ट्रीयता को भी जोड़ लें, तो फिर इस दुनिया के किसी भी कण में भगवान को जगह नहीं मिल सकती है, जबकि दावा सब का यही रहता है कि भगवान का असली आश्रय उसी के पास है। यह वाकई आश्चर्यजनक है…
क्या भगवान सबके आश्रयदाता हैं?
यह आइडिया भी आजकल ज्यादा लोकप्रिय नहीं है कि भगवान सबके आश्रयदाता हैं।
अब तो लोगों का दावा यह है कि वे भगवान को आसरा दिए हुए हैं।
अगर वे आसरा न देते, तो न जाने भगवान का क्या होता।
लोग भगवान के लिए मुकदमा लड़ते हैं, उनके वकील हो जाते हैं कि अगर भगवान को जगह न मिली,
तो वे कहां जाएंगे? अब असलियत क्या है, यह तो भगवान ही जानें?