Dharm Chutti Par Hai, Vigyaan Duty Par Hai ! इस तरह के कई जुमले आजकल सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं। और क्यों न तैरें? कोरोना के बहाने धार्मिकों पर तंज कसने का मौका अगर इन्हें मिल रहा है, तो भला इसे ये क्यों छोड़ेंगे?
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Dharm Chutti Par Hai… जैसे जुमले क्यों चल रहे हैं?
“क्योंकि इन धार्मिकों ने Corona को विज्ञान की असफलता तथा प्राकृतिक प्रकोप की संज्ञा देकर सबको धर्म की शरण में आने का आमंत्रण परोस दिया है”। फिर तो इस जगह इनका विरोध करना जरूरी हो जाता है। अब जानिए कि इसका विरोध क्यों जरूरी है। “आप समझते हैं कि विज्ञान की असफलता तथा प्राकृतिक प्रकोप की संज्ञा देकर ये अपना व्यापार सेट करते रहें और कोई तंज़ भी न कसे तो ऐसा भला कैसे संभव है?
अब इन संज्ञाओं के पीछे छुपी अनिष्टकारी प्रेरणाएं और भ्रामक प्रचार राष्ट्र के लिए घातक भी तो है, इसलिए अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए हम इस विषय पर अपनी दृष्टि थोड़ा विस्तार से यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
आइये हम आपको समझाते है…
स्मॉलपॉक्स (शीतला माता अथवा चेचक) वैरियोला नामक वायरस से होने वाली बेहद खतरनाक संक्रामक बीमारी है जिसके कारण पूरे शरीर में छाले हो जाते हैं। बीसवीं शताब्दी में ही इस अकेले रोग ने 30 करोड़ लोगों के प्राण हर लिए थे। बच गए 20 करोड़ लोगों में एक चौथाई से अधिक लोग जीवन भर के लिए अंधे हो गए थे।
इसी तरह का एक रोग खसरा है जो प्रतिवर्ष दो करोड़ को प्रभावित करता है। पोलियो, एड्स, चिकनपॉक्स, रैबीज इत्यादि न जाने कितनी बीमारियां हैं जो हजारों वर्षों से अरबों मृत्यु का कारण बन चुकी हैं। मलेरिया को जन्म देने वाला सूक्ष्मजीव अकेला ही ऐतिहासिक रूप से 50 अरब से ज्यादा इंसानी मौतों का ज़िम्मेदार है। कोरोना को प्राकृतिक प्रकोप कहने वाले मित्र इसे किस तरह परिभाषित करेंगे? वायरस का अस्तित्व मनुष्य के प्रादुर्भाव से भी पूर्व से पृथ्वी पर बना हुआ है। उनके हिसाब से चला जाये तो मनुष्य अपने जन्म से ही निरंतर प्रकृति के कोप का भागी रहा है।
महामारियों के इतिहास को इग्नोर मत करिए
इंग्लैंड में स्टुअर्ट वंश की साम्राज्ञी क्वीन एनी सत्रहवीं शताब्दी के आखिरी 17 वर्षों में 18 बार गर्भवती हुई। 18 में से 5 संतानें ही जीवित पैदा हुईं, और जिनमें से सिर्फ़ एक बाल्यकाल की दहलीज को पार सकी, और अंततः किशोरावस्था प्राप्त करने से पूर्व वो भी मृत्यु को प्राप्त हो गयी थीं। यह उन शहंशाहों की दास्तान है जिन्हें अपने समय में विश्व की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सीय सुविधाएं प्राप्त थीं। दूर मत जाइए, अपने ही बाप-दादाओं से पूछिए कि आज से एक-दो पीढ़ी पूर्व कितनी संतानें जन्म के बाद तरुणाई को देख पाती थीं? तो भईया इन महामारियों के इतिहास को इग्नोर कर पाना इतना आसान नहीं है।
अब इन बीमारियों को प्राकृतिक प्रकोप सिद्ध कर धर्म की शरण में आने का उद्घोष जितना मूर्खतापूर्ण हैं, उतना ही धूर्तता से लबरेज़ भी है। भईया, यह विश्व 2014 में सोशल मीडिया के जन्म से पहले भी अस्तित्व में था। आप ख़ुद सर्च करिये कि प्रतिवर्ष कितनी बीमारियां कितने निरपराधों के जीवन को डसती रहीं हैं। इक्कीसवीं सदी में ही SARS, MERS, SWINE FLU, EBOLA जैसी कितनी बीमारियां हमें आतंकित कर चुकी हैं। तो भईया, खसरा या स्मॉलपॉक्स या फिर चिकनपॉक्स का वायरस जानवरों में नहीं पाया जाता, बल्कि इंसानों तक सीमित है। अर्थात इन घातक वायरसों को हमनें विरासत में प्रकृति से प्राप्त किया है, किसी जानवर पर अत्याचार से नहीं। तो क्या इसे प्राकृतिक प्रकोप मानकर अरबों निरपराधों को मृत्यु के रहमो-करम पर छोड़ दिया जाए?
यह प्रकोप नहीं, अनंत संघर्ष है
सृष्टि में आज भी खरबों वायरस मौजूद हैं। ये किसी प्राकृतिक प्रकोप का परिणाम नहीं हैं, बल्कि उस क्रूर प्राकृतिक व्यवस्था के अंग हैं जिसके तहत इनके आतंक के साये में रहना हमारी मज़बूरी बन चुकी है। जीवन संतति की जितनी नैसर्गिक चाह हमारे भीतर है, उतनी ही इन जीवों के भीतर भी है। अब क्योंकि सह-अस्तित्व हमेशा लोक-मंगलकारी नहीं होता इसलिए जीवन की इमारत हमेशा मृत्यु की नींव पर ही खड़ी होती है। अनंतकाल से चले आ रहे इस संघर्ष में कभी हम विजयी होते हैं तो कभी ये सूक्ष्मजीवी। यह कोई प्रकोप नहीं, यह तो अनंत संघर्ष है, जिसमें हर हार के साथ किसी पक्ष में जीवन तो किसी पक्ष में मृत्यु समान पारितोषिक प्राप्त करते हैं।
इस शाश्वत युद्ध में हम पीछे नहीं हैं
और इस संघर्ष में हम पीछे भी नहीं हैं।
आज पोलियो, चेचक, खसरा जैसी भीषण आपदाओं का विश्वपटल पर कहीं नाम भी नहीं बचा है।
किसी भी बीमारी का इतिहास उठा कर देख लीजिए।
या तो हम उसे जड़ से मिटा चुके हैं अथवा मृत्यु का औसत एक शताब्दी में
घटकर 10% भी नहीं रह गया है। परन्तु बीमारियों से युद्ध न कभी खत्म हुआ है, और न कभी होगा।
समय के साथ हर जीव की तरह वायरस में भी बदलाव आता है।
और हर बदलाव के बाद एक नया शत्रु नयी शक्तियों के साथ आपके प्राण हरने को तत्पर होता रहता है।
क्योंकि यह एक शाश्वत युद्ध है।
अगर इस युद्ध में आप युवा पीढ़ी को वास्तविक जानकारियों से वंचित कर
फ़र्जी आस्थाओं की ओर मोड़ना चाहते हैं तो फिर इससे क्रूरतम अपराध भी कोई नहीं है।
चेचक का उदाहरण ले लीजिए। देवताओं के प्रकोप, शीतला मैया के क्रोध को
दशकों तक झाडफ़ूंक, मन्नत, चादर चढ़ा के भी शांत न कर सके,
अन्ततः एक मामूली वैक्सीन के कारण ही देवताओं ने इंसानों के सामने पराजय स्वीकार की।
विज्ञान को कोसना आसान है, पर शुक्र मनाइए कि आज वैज्ञानिक प्रगति के कारण आप इस युग में हैं
जब सूचना प्रकाश की गति से चलती है। आप अपने घर बैठे पूरे विश्व से कनेक्टेड हैं।
इस विश्वव्यापी सूचनाक्रांति के कारण ही वैश्विक सरकारें आज ज्यादा जवाबदेह हैं,
अन्यथा दो पीढ़ी पूर्व ही महामारियों से गांव के गांव खत्म ही जाते थे,
किसी को कानोकान भनक भी नहीं होती थी।
Dharm Chutti Par Hai तंज़ का मतलब भी समझिए !
धर्म की वास्तविक परिभाषा लोक कल्याण की भावना से संचालित होती है और वास्तविक लोक कल्याण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही संभव है। अब जो लोग इस संकट को धार्मिक प्रचार के लिए इस्तेमाल कर आमजन को समस्याओं के वास्तविक हल से दूर करने में व्यस्त हैं, उन्हें अपने धार्मिक होने की परिभाषा पर पुनर्विचार कर लेना चाहिए वरना, कहीं ऐसा न हो कि इसी तरह हमेशा के लिए Dharm Chutti Par चला जाए।
विज्ञान तो समस्याओं के समाधान की तार्किक पद्धति व दृष्टिकोण मात्र है, और विज्ञान एवं धर्म में कहीं कोई द्वंद्व भी नहीं है। क्योंकि विज्ञान किसी संस्था का नाम ही नहीं है।
~विजय राज शर्मा
Don’t let your kids suffer from the pool of misinformation circulating on social media…
We need your kids to solve problems of humanity…
And As Always, Thanks For Reading !