इन दिनों Dharmik Aur Rashtrwadi दोनों ही शब्द ट्रेंड में हैं क्योंकि इनका ठेका लेने वाली पार्टी सत्ता में है, लेकिन पार्टी और राजनीति से इतर चल कर अगर हम इन दोनों शब्दों की व्याख्या करें तो यह पायेंगे कि इन दोनों शब्दों का सहारा लेने वाले, या दम ठोकने वाले बेहद विरोधाभासी रवैया रखते हैं जिन्हें सामान्य भाषा में ‘दोगला’ कहा जाता है और हैरानी की बात यह है कि नब्बे प्रतिशत से ऊपर लोग आपको इसी कैटेगरी में मिलेंगे… खासकर भारत में। आइये, समझते हैं कैसे…?
धार्मिक कौन हैं?
पहले पकड़ते हैं धार्मिकों को… यहाँ हम उनकी सदाचार वाली परिभाषा न ले कर उनके प्रैक्टिसिंग रूप को पकड़ते हैं। धार्मिक वह हैं? जो मानते हैं कि कोई अल्लाह या ईश्वर है, जिसने यह दुनिया बनाई है, सभी इंसानों को बनाया है। यानि वह CCTV की नजर से सभी को लगातार देख रहा है, सभी इंसानों के अमाल/कर्म लिखे जा रहे हैं और इन्हीं कर्मों के आधार पर इंसान को मोक्ष मिलेगा, मगफिरत मिलेगी। उसे स्वर्ग का इनाम या नर्क की सजा दी जायेगी।
यहाँ हर तरह के कर्म की कैटेगरी डिसाईड है कि चोरी करोगे तो पाप है, झूठ बोलोगे तो यह पाप है, हत्या करोगे तो यह पाप है, किसी की मदद करोगे तो पुण्य है, सच बोलोगे तो यह सवाब है, ईमानदारी से जीवन गुजारोगे तो यह पुण्य है, इंसाफ करोगे तो यह पुण्य है और सबके अनुपात में सजायें या ईनाम हैं, खास कर इस्लामिक कांसेप्ट में। यानि धार्मिक वही जो इन सब बातों में यक़ीन रखता हो।
कर्म से परखिये
अब इसी चीज को इनके कर्म से परखिये… अपने आसपास के किसी धार्मिक को पहचानिए और गौर कीजिये कि कितनी जगह वह झूठ बोल रहा है, बेईमानी कर रहा है, हकमारी कर रहा है, चोरी डकैती, भ्रष्टाचार, टैक्सचोरी, बिजली चोरी या कुछ न कुछ ऐसा जरूर कर रहा है जो उसने खुद मान रखा है कि यह गुनाह है और इसके बदले ईश्वर या अल्लाह सजा देगा। लगभग हर इंसान में आपको कुछ न कुछ ‘पाप’ जरूर मिल जायेगा। यानि यह जानता है कि यह पाप करने पर उसे ईश्वर/अल्लाह सजा देगा और फिर भी उस पाप को कर रहा है… कैसे? या उसे खुद इस बात पर यकीन नहीं कि ईश्वर/अल्लाह जैसी कोई चीज है, और उसे कभी किसी गुनाह की सजा दी जायेगी… यह उसकी मान्यता के विपरीत है। या फिर उसने ख़ुद से उस कर्म की परिभाषा तय कर ली कि नहीं यह गुनाह नहीं है और यह भी उस मान्यता के खिलाफ है।
यानि दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकतीं… या तो वह धार्मिक है और हर बात को सच मानता है तो किसी ऐसे काम को करेगा नहीं जिसे गलत और गुनाह ठहराया गया हो या फिर वह झूठा धार्मिक है और खुद मानता है कि वह सब बातें बस छलावा हैं, जिनका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं और इसीलिये वह इत्मीनान से हर गलत काम और गुनाह कर लेता है और कभी कोई ईश्वर/अल्लाह उसके गलत काम में बाधक नहीं बनते।
राष्ट्रवाद क्या है?
यही हाल राष्ट्रवाद का है… राष्ट्र क्या है? क्या महज यह जमीन का टुकड़ा और इसे प्यार कर लेना ही प्रयाप्त राष्ट्रवाद है? राष्ट्र में सब कुछ आता है, यहाँ रहने वाले लोग, जानवर, पेड़ पौधे, जमीन, पानी, पहाड़, पर्यावरण, संस्कृति, बोलियाँ, वातावरण, सत्ता, शासन, व्यवस्था… सब अपने कलेक्टिव फॉर्म में राष्ट्र बनते हैं और राष्ट्रवाद सिर्फ जमीन से प्यार कर लेना, भारत माता की जय बोल देना भर नहीं होता। आप किसी और को न देखिये, खुद को देखिये.. और सोचिये…
कि आप एक भारतीय के रूप में कहीं न कहीं टैक्स चोरी कर रहे हैं… सरकारी सुविधा को किसी स्तर पर बेईमानी के सहारे “लूट” रहे हैं… बैंक या किसी और सरकारी विभाग से सरकार द्वारा चलाई जा रही किसी योजना में लोन ले कर उसे डकार ले रहे हैं, बिजली की चोरी कर रहे हैं तो आप “देश” के राजस्व को चूना लगा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिये खुदते पहाड़ों और कटते जंगलों में जरा भी हिस्सेदारी निभा रहे हैं, या ऐसा करने वालों का समर्थन कर रहे हैं, जहरीली होती हवा में प्रदूषण घोलने में अभूतपूर्व योगदान दे रहे हैं, साफ-सुथरी नदियों में दुनिया भर का कचरा डाल कर उन्हें मरने दे रहे हैं… तो आप “देश” के पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचा रहे हैं।
सड़कों, नालियों, शौचालयों, सार्वजनिक इमारतों, बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों, रेलगाड़ियों आदि में कूड़ा कचरा कर रहे हैं, गुटखा थूक कर उन्हें लाल कर रहे हैं.. तो आप “देश” का वातावरण गंदा कर रहे हैं। किसी की बोली के लिये, किसी की क्षेत्रीयता के लिये, किसी की जाति, किसी के धर्म को लेकर उससे नफरत कर रहे हैं, उसे नीचा दिखा रहे हैं या किसी की हत्या कर रहे हैं तो आप “देश” की संस्कृति और देश के संविधान की आत्मा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
गौर कीजिये कि उपरोक्त सभी क्रियाओं में आप देश के साथ क्या कर रहे हैं और फिर दावा करेंगे देशभक्ति का… देश अब किसी राजा, तानाशाह या ब्रिटिश कंपनी का गुलाम नहीं कि उसे आज़ाद कराने के लिये मिट्टी से प्यार करने और उसके लिये मर-मिटने वाली देशभक्ति चाहिये। देश अब आज़ाद है और इसे बनाये रखने के लिये, इसे खुशहाली के साथ आगे बढ़ाने के लिये जिस तरह की नागरिक जागरूकता और जिम्मेदारी वाली देशभक्ति की जरूरत है, वह आपमें सिरे से नदारद है और फिर भी आपका दावा है कि आप राष्ट्रवादी हैं।
यह कैसा राष्ट्रवाद है जो कदम-कदम पर राष्ट्र को क्षति भी पहुंचाये और देश की फिक्र और देश से प्यार करने का दावा भी करे… क्या यह विरोधाभासी चरित्र नहीं? ठीक धार्मिकों की तर्ज पर राष्ट्रवादी भी वैसा ही व्यवहार करते पाये जाते हैं जिसके लिये सामान्य भाषा में वह शब्द प्रचलित है, जो ऊपर बताया… ठीक है कि मानेंगे नहीं लेकिन आइने के सामने खड़े हो कर विचार जरूर कीजियेगा कि आप कितने धार्मिक हैं और कितने राष्ट्रवादी हैं।