बिटिया ने आतंक भरे स्वर में सवाल किया- “पापा ! क्या सब जगह ऐसा करते होंगे? मैंने पूछा- “कैसा?” कि “बैलून में सीमेन भर कर लड़कियों पर फेंकते हैं?” कांप गया था मैं। समझ चुका था कि Ab holi happy nahin rahi. लेकिन क्या कहता बेटी से…
बचपन से ही बेटी की चाह थी। और कभी सोचा नहीं था कि अधेड़ उम्र का जब होऊंगा तो बड़ी होती मेरी बिटिया को, ऐसी आशंकायें डरायेंगी।
जिनको लगता है कि सब ठीक चल रहा है, वो या तो अंधे है या लाश हैं। यहां सब कुछ बहुत ही खतरनाक तरीके से बदल रहा है। भयानक तरीके से।
दीवाली के पटाखों को धार्मिक हक बतानेवाले मूर्खों को एकदम पता नहीं कि वे अपने बच्चों की चितायें जला रहे हैं। प्रदूषण केवल कपोल कथा नहीं है। हवा के जहर से प्रभावित मैं, एक महीने से फेफड़े की परेशानी से जूझ रहा हूँ और मैं अकेला नहीं, बहुत सारे लोग हैं ऐसे। हालत खराब हो गयी है मेरी, खांसते-खांसते। बच्चे, रोज इसी हवा में स्कूल आ-जा रहे हैं।
सरकार में बैठे चूतिए तो अपने ए.सी. कमरे में एक करोड़ का एयर प्यूरिफायर लगा चुके हैं। उनको सड़क पर चलने की जरूरत भी नहीं। कार में भी एयर प्यूरिफायर लगा होगा। तो प्रदूषण उनकी प्राथमिकता नहीं। सीमैन भरे बैलून से भयभीत उनकी औलादें, उनसे ये सवाल भी नहीं करेंगी। उनको तो ये भय ही नहीं होगा।
लेकिन ऐसा ही रहा तो आहिस्ता-आहिस्ता होली बंद हो जायेगी, क्योंकि Ab holi happy nahin rahi. इज्जतदार लोग होली के दिन घर से बाहर निकलना बंद कर देंगे, जैसे दीवाली के दिन कर दिया गया है बाहर निकलना। फिर होली और दीवाली… परिवारों का नहीं, केवल और केवल लंपटों का त्यौहार भर रह जायेगा। तब बस खून खराबा होगा इस दौरान।
खून-खराबा…
बच्चा था, कोई दस बारह साल का… तो होली के दिन हमारे गांव के युवा मुस्लिम… नवल दा को ट्रक से उतारे जाते देखा था… जबड़े के नीचे एकदम सटाकर गोली मारी गयी थी उनको… जो जबड़े को भेदते सिर से बाहर आ गयी थी। हत्यारे ने उनको होली का पुआ खिलाया, दारू पिलाई और गोली मार दी।
ये बेहद आम होने वाला है भविष्य में।
सीमेन से भरे बैलून का जवाब AK47 ही संभव है, या हैंड-ग्रैंनेड… जो उम्र होती तो मैं इन दोनों का उपयोग कर, खून की होली खेलता। ऐसी होली में, खून बहाने में रत्ती भर भी हिचक नहीं होती… आप यकीन मानिए।
अपने बच्चों से मैं यही उम्मीद करूंगा कि भविष्य में वे ऐसे सीमेन फेंकने वाले को गोली मार दें।
~आनंद के. कृष्ण