India is a Dieing Country..! Run Kid..! run out from here..!
अगर आप योग्य माता-पिता हैं तो बच्चों को इस लायक बनाइये कि वो भारत छोड़, भाग कहीं और बस सकें क्योंकि भारत अब मर रहा है… India is a Dieing Country… और किसी देश के हिसाब से ये बहुत तेज मौत है।
ये कोई व्यक्ति नहीं है कि दस दिन में ही मर जायेगा, पर इसकी मौत हो रही है। दो पीढ़ी के बाद ये दोजख से भी बदतर हो जायेगा।
मैं बचपन में बड़ा देशभक्त था। देश के नाम से खून गर्म हो उठता था। स्कूल में नारे लगाते और देश के बारे में सोचने पर लगता था कि देश के लिए जान दे देंगे एक दिन। वक्त के अनुभव से समझ आ गया कि देश कोई मिट्टी और जमीन नहीं, व्यक्तियों से बनता है। और व्यक्ति यहां तो…
होश उड़ गये…! जब व्यक्तियों की करतूतों से देश समझ आया। समाज की मुसीबतों में, बच्चों की मदद करने की कोशिश में, आसपास के लोगों से सहयोग मांग, एक बेहतर भारत बनाने की कोशिश में दिख गया कि ये वो देश है ही नहीं, जिसके लिए बचपन में खून गरम होता था।
बचपन का खून तो आजादी की लड़ाई की कहानी सुन कर गर्म होता था, मतलब बचपन में जो देश मुझे समझ आ रहा था, वो 1940 से पहले का देश था। बचपन की वो भक्ति मेरी, दरअसल अतीत के भारत में थी। जिसमें बस महान लोग थे।
जब अतीत के भारत से सीधा वर्तमान में सामना हुआ कि सच कुछ और ही निकला। और ये भारत तो वो है ही नहीं जिसके लिए खून गर्म हो मेरा।
मेरे भीतर… देश भक्ति तब ही थी, जब मेरी उम्र के बच्चे गुटबाजी कर, दूसरे गुट को सताने का महान काम कर रहे थे। मैं उसी वक्त राष्ट्र के लिए भाई-चारा और देश कल्याण का कुछ करना चाहता था। इच्छा होती थी कि कोई मेरी पीठ पर कोड़े मारे और मैं जोर से साहस के साथ चीखते “भारत माता की जय!” बोलूं… चंद्रशेखर आजाद की तरह। गांव में घर की पास की सब्जी बाड़ी में बदूंक का पौधा लगाना चाहता था, भगत सिंह की तरह। कई बार खिलौने वाली पिस्तौल को माटी में रोपते हुए… मां ने पीटा था। मैं कहता – देश के दुश्मनों को मारूंगा। लेकिन वो दुश्मन तो अतीत के थे।
अजीब है, कि स्कूली किताबों ने दुश्मन की समझ ही कितनी गलत डाल दी। स्कूली किताबों ने कभी भी, देश के व्यक्तियों की पतनशीलता के बारे में नहीं बताया। उसने अनैतिकता, भ्रष्टाचार, अपराध, हत्यायें, बेईमानी, बलात्कार, क्रूरता, चालाकी, अनदेखी, लूट, लालच, मूर्खता… के बारे में नहीं बताया। स्कूल की भूगोल किताबों ने प्राकृतिक संसाधनों के बारे में बताया पर उसकी सतत लूट और विवेकहीन दोहन के बारे में चर्चा तक नहीं की।
स्कूल ने बस ये दिखाया कि दुनिया बेहद अच्छी चल रही है, जबकि हो उसका उल्टा रहा था। मेरे बचपन के किताबी देश से अलग, असल दुनिया बदत्तर हो रही थी, और मुझे उसे अच्छा बताया जा रहा था। हमारे साथ ये धोखा हो रहा था।
बच्चों से ये धोखा आज भी जारी है, पर मैं उन्हें सच बताता रहता हूं। कि किताबों पर यकीन मत करो… टीचर और स्कूली भाषणों पर तो एकदम ही नहीं… वे बच्चों को धोखा देने के केंद्र हैं। सच देखो अपनी चारो तरफ, और कोशिश करो इससे निकल भागो। ये सच, महाराक्षस है। इससे संघर्ष मुमकिन नहीं, तो कोशिश करो कि भाग लो इस सच से।
आज भी, स्कूलों में बच्चों को यौन शोषण से बचाने की कोशिशों में सच से जूझता हूं तो वो और भी भयानक दिखता है। सच, केवल यौन शोषण का भयानक नहीं है… ये भयावता सैकड़ों स्तर पर है। एक अजीब धोखाधड़ी चल रही है बच्चों और समाज से, ज्यादतर मामलों में तो खुद से। खुद माता-पिता ही कर रहे ये धोखाधड़ी।
और इसका कोई उपाय नहीं कि ये इस कदर, लत की तरह हमारे लहू में घुला हुआ है कि असाध्य है। तो बस इकलौता विकल्प यही है कि भाग जाओ। अब कोई इसे कायरता कह सकता है, तो उसने मेरी बहादुरी नहीं देखी है। बहुत बहादुर रहा हूं मैं…
पर जब बम गिरे तो सीना तान कर उसे रोकना, बहादुरी नहीं, बेवकूफी है। हजार गुंडों से सिनेमाई लड़ाई… एक फरेब है। हकीकत ये है कि आप भागिए, जान तभी बचेगी। वर्ना रॉड की एक ही चोट से, भेजा फट जायेगा और मगज बाहर निकल आयेगा। नसीब ठीक है तो पांच-सात साल कोमा में रह कर जिंदा रहिएगा, बदनसीब है तो फौरन मर जाइयेगा। तो भाग लीजिए! हर बार बच्चों को बहादुरी नहीं, मैं भाग जाना सिखाता हूं।
भाग ! भाग ! भाग ! भाग ! बच्चे !
भले देश या धरती छोड़ भागना पड़े… पर भाग !
लेकिन, भाग वही सकते हैं, जो काबिल और योग्य हैं। भागने का विकल्प सबके पास नहीं होता। भागना, एक हुनर है।
मूर्ख तो मुग्ध और मोहित हो जाते हैं… जैसे रात को सड़क पर गाड़ी की तेज रोशनी से जानवर हो जाते हैं, और भागने के बदले पहिये के नीचे आ मरते हैं।
गब्बर ने पूछा था कि “कब है? कब है होली?”
तो वो आज है। “आज है होली..!”
और आज ये प्रार्थना है कि बच्चों को “होली” के इस शब्द और अवधारणा ही याद न रहे… वो ऐसे भागे यहां से।
~आनंद के. कृष्ण