भारत में कैंसर से लगभग 84 लाख लोग हर साल मरते हैं। कैंसर से मरने वालों की ये संख्या कुल मौतों का 13 प्रतिशत है। इस हिसाब से हर साल 10 लाख से भी ज्यादा लोग Irrfan की तरह कैंसर से मर जाते हैं। और 10 लाख नए लोग इसमें जुड़ जाते हैं। कैंसर के इलाज के लिए जो नामित अस्पताल हैं उनमें साधन कम पड़ गए हैं, लंबी वेटिंग हैं। स्ट्रेचर पर गम्भीर बीमार पड़े मिल जाते हैं, कई बार तो वे स्ट्रेचर पर ही दम तोड़ देते हैं।
गांवों में जब मरीज के शरीर के किसी हिस्से में दर्द होता है तो दर्द निवारक दवा से काम चला लिया जाता है। जब यह बीमारी विस्फोटक हो जाती है तब इलाज के लिये बाहर निकलते हैं। इसमे अधिकतर लोग इलाज नहीं करा सकते क्योंकि कैंसर का मुकम्मल इलाज 12 से 15 लाख के बीच पड़ता है। यदि कैंसर से संक्रमित पार्ट शरीर से निकाल देने का कोई विकल्प है तो मरीज के स्वस्थ होने की संभावना बची रहती है अन्यथा तीसरी स्टेज के 60 प्रतिशत रोगी एक बार ठीक होकर फिर से इसकी चपेट में आ जाते हैं। 40 प्रतिशत की मृत्यु पहले इलाज के दौरान ही हो जाती है क्योंकि Chemotherapy को बर्दाश्त करना हर शरीर के बस का नहीं है।
कैंसर की चौथी स्टेज पर 10 प्रतिशत मरीज ही बच पाते हैं।
यह समय कोरोना काल है।
भारत में कुल 27 लाख इन्फेक्टेड लोगों मे से 19.8 लाख लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं।
कोरोना से विश्व में लगभग 7.73 लाख मौतें हुई हैं। और भारत में 51,797
तमाम अमीर औऱ साधन संपन्न लोग बचा लिए गए हैं।
और इस समय पूरा विश्व बाकी तमाम काम रोककर कोरोना वैक्सीन खोजने में लगा है।
कोरोना भी जिस दिन कैंसर की तरह इकॉनमी बूस्टर बीमारी बन जाएगा, यह खबरों से गायब हो जाएगा।
और खबरों से गायब होने के बाद भी लोग कोरोना से मरते रहेंगे,
पीड़ित होते रहेंगे लेकिन हमें यह बता दिया जाएगा कि कोरोना अब उतना घातक नहीं है।
कैंसर, दमा, एड्स, डेंगू, हेपिटाइटिस (बी) से भी तो लोग मरते हैं न।
लेकिन सरकार को भारी टैक्स और आमदनी देकर मरते हैं।
दवा उद्योग को बड़ा करके मरते हैं लोग। कोरोना अभी उस सूची में नही आया है।
दवा उद्योग एक बेईमान उद्योग है!
क्या सरकारों को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के रोकथाम की व्यवस्था उस तरह नहीं करनी चाहिए जैसी व्यवस्था आज कोरोना के हो रही है। निचले स्तर पर ही Diagnose करने की व्यवस्था, बीमारी उजागर होने के बाद फ्री इलाज की व्यवस्था, एक जिम्मेदार सरकार की जिम्मेदारी है। पी॰ जी॰ आई, एम्स में यह सुविधा है लेकिन जिस संख्या में वहाँ कैंसर मरीज आ रहे हैं यह सुविधा कुछ भी नही है। दवा उद्योग एक बेईमान उद्योग है, जो कैंसर पर शोध करके कोई सस्ता इलाज निकाल सकता। आप जानते होंगे कि बीमा कम्पनियां कैंसर पीड़ित का स्वास्थ्य बीमा नही करती हैं। आप पूरे स्वस्थ हो तो कैंसर को कवर कर लेती हैं, लेकिन प्रीमियम बढ़ा देती हैं।
Irrfan जैसी जेब भी कितनों के पास है?
मेडिकल स्टोर वालों के साथ डॉक्टरों की सेटिंग है। Medicine कम्पनियां डॉक्टरों से सेटिंग करके चलती हैं। दोनो का उद्देश्य स्वास्थ्य न होकर मुनाफा हो गया है। ऐसे में Irrfan जैसी जेब भी कितनों के पास है? फिर भी Irrfan चले जाते हैं और हमें लगता है कि कैंसर से सम्बंधित जो आंकड़े बरसो से आ रहे हैं उसी के अनुसार लोगो का मरना तय है। आंकड़ों को पलट देने की इच्छा शक्ति सरकारों में औऱ दवा उद्योग में नजर नही आती यह हमारे लिए कसमसा कर रह जाने जैसा है। हम Irrfan को औऱ दस लाख लोग सालाना मौतों को इसी तरह श्रद्धांजली देने के लिए मजबूर हैं।
~वीरेंद्र भाटिया
#RipIrrfanKhan