Bakra Eid का दिन था जुम्मन मियां कुर्बानी की तैयारी में लगे थे। यह पहली बार था जब जुम्मन मियां के यहां केवल एक ही बकरे की कुर्बानी दी जा रही थी, वर्ना तो 2 बकरे से कम में इनका अल्लाह कभी मानता ही न था। आज जुम्मन मियां बड़े जोश में थे नया कुर्ता नया पजामा नई टोपी लेकिन दाढ़ी वही 30 साल पुरानी जो उम्र के साथ लगातार नीचे से घिसती जा रही है बिल्कुल उनके पजामे की तरह जो नीचे से सरक कर ऊपर की ओर बढ़ी जा रही है।
आज अल्लाह को खुश करने का दिन था इसलिए Bakra Eid की नमाज अदा करते ही वे घर पहुँचे देखने में बकरा और जुम्मन मियां सगे भाई लग रहे थे क्योंकि दोनों में काफी कुछ एक सा था खासकर दोनों की दाढ़ी का रंग और आकार तो बिल्कुल एक जैसा ही था बकरे की दाढ़ी लाल रंग की थी तो जुम्मन मियां ने भी मेंहदी लगा कर अपनी दाढ़ी को लाल कर लिया था।
बकरा शहीद होने के लिए पूरी तरह तैयार था यह जुम्मन मियां का रुतबा ही था की जबह करने वाला मौलाना सबसे पहले उनके यहां ही पहुंचा। कुर्बानी का प्रोसीजर शुरू हुआ और थोड़ी ही देर में बकरे की मुंडी अलग पड़ी थी और शरीर रस्सियों के सहारे हवा में झूल रहा था।
दोपहर तक Bakra Eid पर हुई इस कुर्बानी का सारा गोश्त तीन भागों में बांटा जा चुका था एक हिस्सा गरीबों को दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों में तीसरा हिस्सा खुद के लिए और चमड़ा मदरसे में भेजा जा चुका था।
थोड़ा फारिग हुए तो उन्होंने बेगम से पूछा
कोई छूट तो नहीं गया न !!
सबके यहां तो पहुंच गया बस कबीर को छोड़ कर।
वो तो काफिर है, फिर भी लाओ मैं खुद दे आता हूँ।
Bakra Eid पर जुम्मन मियां और कबीर संवाद
कबीर घर पर ही मिल गया। जुम्मन चाचा इंसानियत जिंदाबाद!
कैसे हो?
मैं ठीक हूँ कबीर
लो इसे रख लो कबीर
क्या है ये?
ये सिरनी है
लेकिन मैं तो शाकाहारी हूँ
कोई बात नही रख लो घर में कोई तो खाता होगा
आप इसे अपने पास ही रखें। बैठें मैं चाय बोलकर आता हूँ।
देखो कबीर !! मजहब के मामले में मुझे मजाक बिल्कुल पसन्द नहीं और आज के दिन मुझे बहुत काम है इसलिए आज बख़्श दो फिर कभी मैं तुम्हारी बकवास जरूर सुन लूंगा।
अरे चाचा मैंने तो कुछ कहा ही नही, आप इतने दिनों बाद मेरे घर आये हैं चाय तो पी ही लीजिये।
कबीर की इल्तजा पर जुम्मन चाचा सोफे का एक कोना कब्जा कर बैठ गये। कबीर जानता था की चाय जुम्मन मियां की कमजोरी है दिन की 150 चाय तो वे डकार ही जाते हैं।
तार्किक कबीर
हाँ तो चाचा बकरा शहीद कर ही दिया?
देखो यह अल्लाह का हुक्म है इसलिए करना ही पड़ता है।
अल्लाह ने आपको हुक्म दिया था, चाचा?
नहीं, उन्होंने इब्राहिम अलैहिस्सलाम को ऐसा करने को कहा था।
अच्छा, तो फिर आप क्यों कर रहे हैं?
क्योंकि वो हमारे नबी थे और नबी ने अपनी उम्मत को ऐसा करते रहने का हुक्म दिया था?
आप कौन से नबी के उम्मती है इब्राहिम के या मोहम्मद के?
सारे नबी हमारे मसीहा थे लेकिन आखिरी नबी हमारे प्यारे रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम थे।
तो आप आखिरी नबी की वजह से कुर्बानी करते हैं हैं न !!
हाँ, उन्होंने भी ऐसा किया था ये सुन्नत भी है और वाजिब भी।
लेकिन उन्होंने यह कब कहा की 1400 साल बाद भी ऐसा ही करते रहना?
उनका हुक्म ता कयामत तक के लिए है समझे और मैं देर हो रहा हूँ मेरा टाइम और दिमाग मत खराब करो चाय के बहाने तुम मेरे मजहब की तौहीन करने बैठे हो मैं सब समझता हूँ। कुर्बानी से अल्लाह को खुशी मिलती है बस इतना ही समझ जाओगे तो यही तुम्हारे लिए काफी है।
जुम्मन चाचा के साथ चाये पर बात
तभी अंदर से आवाज़ आती है- “कबीर साहब चाय तैयार है आकर ले जाएं !”
जीवनसंगिनी की आवाज सुनते ही कबीर उठा और किचन की ओर लपका थोड़ी ही देर में दो कप चाय लेकर ड्राइंगरूम में हाजिर हो गया।
हाँ तो हम कहाँ थे चाचा?
हाँ याद आया, मुझे बस इतना बता दो की बकरे की हत्या से आपका अल्लाह क्यों खुश होता है?
चाचा ने गर्म चाय की पहली चुस्की लेते हुए जवाब दिया-
क्योंकि वह मोमिन की नियत जानना चाहता है?
अच्छा, मतलब की अल्लाह को मोमिन की नियत जानने के लिए उसका इम्तहान लेना पड़ता है??
हाँ, भाई इसमें क्या गलत है? अल्लाह के इम्तेहान से तो सारे नबियों को गुजरना पड़ा है हम तो आम इंसान हैं।
तो इसका मतलब यह है कि अल्लाह अपने भक्तों को बिना इम्तेहान के नहीं जान सकता??
देखो कबीर, यह अल्लाह का कानून है तुम्हारे पास इतनी अक्ल नहीं कि तुम इसे समझ सको सारे मख़लूक़ात उसी के हैं तो वो मर कर उसी के पास जाते हैं इसमें क्या गलत है? वही पैदा करता है वही मारता है।
लेकिन बकरे को तो तुमने मारा, चाचा !!
हुक्म तो उसी का था न !!
हुक्म बेटे को मारने का होता तो क्या बेटे को उसी तरह जबह करते जैसे इस बकरे को किया है?
देखो कबीर मैं फिलहाल लेट हो रहा हूँ मेरे पास समय नही है मैं चलता हूँ इसे रखना हो तो रख लो।
ये किसी जीव के जिस्म के टुकड़े आप अपने साथ ले जाएं और किसी गरीब की गरीबी दूर करें मुझे नही चाहिए।
जहन्नुम में जाओ।
कह कर चचा वहां से निकल लिए…
~शकील प्रेम