मैंने सालों तक landoos प्रजाति के व्यवहारों का गहन अध्ययन किया है! आज इनके कुछ लक्षणों को आपके सामने पेश करके बताना चाहूंगा! कि Landoos kise kahte hain?
ध्यान दीजियेगा…
हर गांव में दर्जन भर ऐसे लड़के पाये जाते हैं! जो पढाई-लिखाई में भले लुल्ल हों, लेकिन भौजाइयों के बीच बेहद लोकप्रिय होते हैं!
गांव की औरतों को मायके छोड़ना, बूढ़ी दादी को बैंक में ड्राप करना, बुजुर्ग लोगों के लिए खैनी-बीड़ी का जुगाड़ करना, पूरे गांव का एलपीजी सिलिंडर भरवाना और कीचड़ में फंसे ट्रैक्टर को तब तक निहारना जब तक वो बाहर न निकल जाये- ये इनके प्रमुख काम हैं!
प्राचीनकाल में गांव की भौजाइयों के लिए 10 रूपये का स्क्रेच कार्ड खरीद कर लाना भी इन्हीं की जिम्मेदारी थी! सावन में जामुन तोड़कर बुआ लोगों तक पहुँचाना इनका सीजनल काम है!
लंडूस प्रजाति को कैसे पहचानते हैं?
ये बेहद आसान है! क्योंकि ये लोग आपको हमेशा दांत चियारे मिलेंगे! कोई बड़ा दिख गया तो पांव छूकर हाथ को सीने से लगाएंगे! हमउम्र मिल गया तो हाथ मिलाकर हाथ को सीने से लगाएंगे! इनके दोनों हाथों की कानी ऊँगली पर नेलपॉलिश चढ़ी होती है और गले में 5 रूपये की एक सुनहरी माला होती है जो शर्ट के बाहर तक निकली होती है!
Landoos हमेशा पास वाले नुक्कड़ पर मिलेंगे… 25 रुपया वाला Bayban का चश्मा लगाये हुए! पान वाले से लेकर परचून और बेकरी से लेकर चाट वाले तक- सब इनको पहचानते हैं!
उसी चौक पर एक बैनर हमेशा टँगा रहता है जिसमें हाथ जोड़े और वही 25 रुपया वाला चश्मा लगाये हुए इनका फोटो चिपका दिखेगा! उसमें नए साल से लेकर रक्षाबंधन और गणतंत्र दिवस से लेकर पोंगल- सभी त्योहारों की बधाई एक साथ लिखी होती है!
गांव में कोई मर मुरा गया तो बांस बल्ली फाड़ने सबसे पहले यही पहुँचते हैं! इन्हें दुनिया भर के टोटके मालूम होते हैं… सिवाय हाइड्रोक्लोरिक एसिड के केमिकल फॉर्मूले के!
अगर निम्बू पर सिंदूर डला सड़क पर कहीं दिख गया है तो उसे कदापि नहीं लांघना है! ये इसे अच्छी तरह जानते हैं।
शादी, विवाह, मुंडन, जनेऊ जैसे शुभ अवसरों पर ये लोग यात्री निवास में ही मिलेंगे! इनको सारी बातें तभी याद आती हैं जब फुल्ल भोलूम में DJ बजना स्टार्ट होता है! बड़े से स्पीकर के पास जाकर मोबाइल पर चीख़ कर बात करते हैं… पता नहीं कैसे?
स्टेज पर खड़ा गायक जैसे ही आलाप लेता है, लंडूस उसको इनाम देने स्टेज पर चढ़ जाते हैं! मुंह में दस रुपये का नोट दबाकर स्टेज पर नाचती हुई लौंडिया को पकड़ाने वाली यह प्रजाति सबसे अंत में भोजन ग्रहण करती है! आयोजन भले किसी के यहाँ हो रहा हो! लड़की/लड़के के बाप से ज्यादा बीजी यही रहते हैं!
गज़ब भौकाल है इनकी
सारा टेबल खाली रहेगा… लेकिन खाएंगे कुर्सी पर पत्तल रखकर! ये इनका भौकाल है! भूख लगी है… अब लगता है जान निकल जाएगी… बोल बोल के परेशान कर देंगे! पत्तल भर खाना लेकर जब खाने बैठेंगे तो दो पूड़ी के बाद बम्म बोल जायेंगे!





कारण? मुंहवे नहीं खुल रहा! अब दिन भर में इतना कमला पसंद खाएंगे तो मुंह किधर से खुलेगा?
बेहद आज्ञाकारी और हर वक्त पड़ोस के रेलवे स्टेशन पर पायी जाने वाली लंडूस प्रजाति जब मंदिर जाती है तो चार जगह चंदन लगाती है- सर, दोनों कान और कंठ पर!
पूजा सम्पन्न होने के बाद इन्हें पंजीरी बाँटने का तगड़ा अनुभव होता है! हमेशा दाहिने हाथ पर देते हैं! आरती के वक्त जस्ट भगवान की मूर्ति के बरोबर में खड़े मिलते हैं… माथे पर एकरँगा बांधे, जिसपर “जय माता दी” लिखा होता है!
Landoos को अपने जिले में आयोजित होने वाले हर भंडारे के बारे में पता होता है! वहीं इनका असली जलवा निकल कर सामने आता है!
भण्डारा खिलाने के वक्त Landoos प्रजाति भौजाइयों पर… मेरा मतलब, उनकी पत्तल पर कड़ी नजर रखते हैं! कभी-कभी भौजाइयों के लिए ये लोग स्पेशल एंट्री पास का काम करते हैं!
भंडारे से Landoos वही आइटम उठाते हैं जिसकी सबसे ज्यादा डिमांड हो! मसलन… पूड़ी! बूढ़े-बुढ़िया-बच्चे मांग मांग के मर जाएँ नहीं देंगे! ….और युवतियों और भौजाइयों का पत्तल खाली नहीं होने देंगे!
ये इतने अटेंशन सीकर होते हैं कि दिन में दस बजे संडास के लिए निकलते हैं… पेप्सी की दो लीटर वाली बोतल लेकर!
And last, but not the least
दोस्त की बाइक लेकर मेला देखने जाते हैं और चाभी हाथ में देते ही बोलते हैं…. भाई! बाइक सर्विसिंग मांग रही है!
ऐसी प्रजाति को शुद्ध भाषा में हम “लंडूस” कहते हैं!