देखा जाये तो लाखों शब्द हैं, जो दुनिया की लगभग हर चीज को परिभाषित कर देते हैं लेकिन फिर भी मुझे उस एक Perfect word की तलाश है जो मुझे या मेरे जैसे लोगों की भीड़ को एक Perfect word में बांध सके।
बात अकीदे या आस्था की है…
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दुनिया में मूलतः तीन तरह के लोग होते हैं
आस्तिक यानि “ईश्वर है” के कॉलम में टिक लगाने वाले, नास्तिक यानि “ईश्वर नहीं है” के कॉलम में टिक लगाने वाले और तीसरे जिन्हें साधारणतः Agnostic कहा जाता है, यानि “कह नहीं सकते” या “पता नहीं” के कॉलम में टिक लगाने वाले। पहली दो पहचान तो एकदम निश्चित हैं लेकिन तीसरी कैटेगरी में दो तरह के लोग आते हैं और उनकी अलग से कोई पहचान नहीं होती।
यानि एक वह होता है जिसे हम संशयवादी/अज्ञेयवादी के रूप में Categorized करते हैं लेकिन यह प्रजाति एक Confused प्रजाति के तौर पर पहचानी जाती है, जो न इधर में है और न उधर में…
जबकि दूसरे वह हैं जिनके लिये कोई Perfect word ही नहीं है। न आप उन्हें Agnostic के दायरे में फिट कर सकते हैं और न ही संशयवादी/अज्ञेयवादी कह के परिभाषित कर सकते हैं क्योंकि न ही वह खोज में हैं और न ही संशय में… शायद मैं भी इसी श्रेणी में आता हूँ।
हमें तलाश है एक Perfect word की
पहली चीज आस्था (अकीदा) यानि किसी चीज पर यक़ीन की है और पहली निश्चित दोनों पहचान वालों के अपने-अपने अकीदे हैं। दुनिया में जितने भी धर्म हैं, अनीश्वरवादी कुछ धर्मों को छोड़ कर बाकी सभी में कोई ईश्वर मौजूद है जिसने इस पूरे ब्रह्मांड, इस पृथ्वी और इस पर मौजूद हर चीज को बनाया। ईश्वर के नाम अलग-अलग हो सकते हैं, बनाने की पद्धति अलग-अलग हो सकती है लेकिन मूल कांसेप्ट एक ही है… इस कांसेप्ट में यकीन रखने वाले आस्तिक कहलाते हैं।
जबकि इस पूरे कांसेप्ट को तर्क और विज्ञान की कसौटी पर परख कर और इस मॉडल को पूरी तरह Fake जान कर जो इस अकीदे यानि आस्था को ठोकर मार कर एक विपरीत आस्था को अपनाते हैं कि ब्रह्मांड सेल्फ मेड है और हर चीज के बनने की एक निश्चित प्रक्रिया है जिसमें ईश्वर जैसी किसी भी शक्ति का किसी भी प्रकार का कोई Contribution नहीं है… वे नास्तिक कहलाते हैं।
हम जानते हैं ईश्वरीय दावों का खोखलापन





इन दोनों के उलट जो तर्क और विज्ञान की कसौटी पर परख कर सारे ईश्वरीय दावों का खोखलापन तो समझ जाते हैं और उससे किनारा भी कर लेते हैं लेकिन इस विशाल-विकराल Universe के According एक रेत के जर्रे जैसे प्लेनेट पर माइक्रो बैक्टीरिया से भी गयी गुजरी हालत में होते हुए भी इंसान इस बारे में कोई निश्चित फैसला करने का दावा करे कि सब कुछ सेल्फमेड है और इसे किसी ने नहीं बनाया। यह स्टैंड भी उन्हें हजम नहीं होता और उन्हें “हो सकता है” के अंदाज में लगता है कि कोई इस पूरे Universal System का Creator या Programmer हो सकता है, या हो सकते हैं, जिन्हें हम समझने में ही सक्षम नहीं, ऐसे लोग साधारण भाषा में Agnostic कहलाते हैं।
हमें तलाश है एक Perfect word की
जबकि हम जैसे लोग इस चीज को समझने के बाद कि दुनिया के सारे ही ईश्वरीय Concept fake हैं, इस “है” या “नहीं है” टाईप दोनों आस्थाओं से ही मुक्त हो जाते हैं। ईश्वर या कोई Creator हमारे विमर्श से ही बाहर हो जाता है। मतलब हमारा सीधा मानना है कि कोई ईश्वर नहीं है तो भी, और है तो भी, उसके लिये हम एक Bacterial experiment से ज्यादा कुछ नहीं हो सकते, न वह हमारे जन्म-पुनर्जन्म ही निर्धारण कर रहा है, न हमारे कर्म और न हमारे कर्मों के आधार पर वह ‘जन्नत-दोजख’ जैसा कुछ देने वाला है। तो उसकी फिक्र ही बेकार है। आपका जीवन आपके अपने कर्मों पर Depend है, अब इसे बेहतर बनाइये या बदतर बनाइये… ये आप पर है।
मैं Religion-free हूँ लेकिन…
लेकिन फिर भी, धर्म और समाज यह दोनों हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं।
आप धर्म या मज़हब से मुक्त हो सकते हैं लेकिन समाज से नहीं,
तो बहुत से वह नियम जो समाज या संस्कृति से जुड़े हैं, वे हम पर भी अप्लाई होते हैं।
अब ऐसे में अगर हम ऐसे किसी कार्य या Event में Participate करते हैं
तो उसका अर्थ हमारा आस्तिक हो जाना नहीं होता।
मतलब मैं Religion-free हूँ लेकिन होली, दिवाली, ईद बकरीद भी मना सकता हूँ
तो वह इसलिये नहीं कि मेरी इनके Concept में कोई आस्था है,
बल्कि इसलिये क्योंकि यह सांस्कृतिक रूप से हमारे समाज से जुड़े Event हैं।
मैं मंदिर भी जा सकता हूँ,
मस्जिद भी जा सकता हूँ,
पूजा भी कर सकता हूँ,
और नमाज भी पढ़ सकता हूँ।
तो वह इसलिये नहीं कि मेरी भी बाकी ऐसा करने वालों की तरह ही आस्था है।
आस्था या अनास्था में शरीक हो जाने से हम आस्तिक या नास्तिक नहीं हो जाते।
बल्कि इसलिये कि मेरे ऐसा करने से कोई मेरे साथ का, या मेरा करीबी खुशी महसूस कर रहा है।
मेरे लिये उसकी खुशी महत्वपूर्ण है, आस्था या अनास्था नहीं।
जैसे एक मुस्लिम प्रसाद खा कर या नमस्ते कर के हिंदू नहीं हो जाता,
जैसे एक हिंदू सलाम कर के या मस्जिद-मजार पे श्रद्धा से सर झुका देने से मुस्लिम नहीं हो जाता,
ठीक उसी तर्ज पर किसी अपने की खुशी के लिये उसकी आस्था या अनास्था में शरीक हो जाने से
हम आस्तिक या नास्तिक नहीं हो जाते।
अब बताइये हमारे लिये एक Perfect word?
अनीश्वरवादी (Agnostic) इसलिये नहीं कि हम उस विमर्श से ही किनारा कर चुके
और धर्म मुक्त कहने पर धर्म की परिभाषा विवाद बन जायेगी,
क्योंकि वह मज़हब के रूप में भी परिभाषित होता है और सदाचार के रूप में भी।