Adhyatmik मंडली में या Spirituality का समर्थन करने वाले लोगों में यह आम धारणा व्याप्त है कि भौतिकवादी (Materialistic) न होना Adhyatmik होना है। जितना ज़्यादा आप Adhyatmik होंगे उतना ही कम भौतिकवादी (Materialistic) होंगे। अधिकांश Adhyatmik लोग कहते हैं कि वे उस सीमा तक Adhyatmik हो जाना चाहते हैं, जिसके आगे सभी भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
मैं इस विचार का विरोधी हूँ। मैं नहीं समझता कि यह संभव हो सकता है और वास्तव में मैं तो कहना चाहता हूँ कि मैं भौतिकवादी (Materialistic) होना चाहता हूँ।
जी हाँ, मैं भौतिकवादी (Materialistic) होना चाहता हूँ। क्यों? क्योंकि जिन बच्चों की हम मदद कर रहे हैं, उन्हें भौतिक चीजों की ज़रूरत है! अगर हम पैसे न कमाएँ और हमारे चैरिटी संगठन को आर्थिक सहायता प्राप्त न हो तो हम किस तरह उनके भोजन, किताब-कापियों, पेन-पेंसिलों और वर्दियों या शिक्षकों की व्यवस्था कर पाएँगे?
चलिए ठीक है, मैं मानता हूँ कि भौतिक वस्तुओं को जमा करना और सिर्फ इसलिए जमा करते जाना कि आप उन्हें देख सकें या देखकर खुश हो सकें या यह सोचकर खुश हो सकें कि आपके पास कहीं न कहीं ये वस्तुएँ मौजूद हैं, ठीक नहीं है। लेकिन फिर भी हम भौतिक संसार में रह रहे हैं। आप आध्यात्म या (Spirituality) आध्यात्मिकता के बिना ज़िंदा रह सकते हैं लेकिन भौतिक वस्तुओं के बगैर थोड़े समय के लिए भी जीवित नहीं रह सकते।
आप भोजन करते हैं, जो एक भौतिक वस्तु है। आप कपड़े पहनते हैं, वह भी भौतिक चीज़ है। आप अपने घर को हीटर से गरम रखते हैं या गर्मियों में कूलर/एसी लगाते हैं, वह भी एक भौतिक काम है। सभी चीज़ें भौतिक वस्तुओं से ही प्राप्त होती हैं और हर कोई, जिसके पास खाना, कपड़ा या मूलभूत सुविधाओं से युक्त घर नहीं है, ठीक यही चीज़ें चाहता है। खाने-पहनने के लिए और और खुद के लिए मामूली सुविधाएँ जुटाने के पर्याप्त भौतिक साज़ो-सामान।
तो अगर आप आध्यात्मिक राह पर कदम रख चुके हैं और विश्वास करते हैं कि आपको अब हर भौतिक वस्तु की आवश्यकता को समाप्त कर देना है, तो भूल जाइए। वास्तविक (Spirituality) आध्यात्मिकता तब प्राप्त होती है जब आप अपनी भौतिक सुख-सुविधाएँ दूसरों के साथ साझा करना सीख लेते हैं।
वारेन बफे और बिल गेट्स जैसे लोग भी-जो धार्मिक नहीं हैं, यहाँ तक की वे Nastik हैं- अपनी आमदनी का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा दूसरों को दान कर दे देते हैं। मेरे लिए तो वे उन Adhyatmik गुरुओं, धार्मिक पंडे-पुजारियों और लोगों से ज़्यादा Adhyatmik हैं, जिन्होंने बड़े-बड़े मंदिर और आश्रम तामीर किए हैं, जब कि वे हर वक़्त दूसरों को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाते रहते हैं, कहते हैं भौतिकता से नाता तोड़ लो! दूसरों की भौतिक दौलत को लूटकर वे स्वयं अमीर बनते हैं और खुद के Adhyatmik होने का दिखावा करते हैं।
अगर आप भौतिकवादी हैं और अपनी भौतिक वस्तुओं को दूसरों के साथ साझा करना जानते हैं तो आपको आध्यात्मिकता की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। जब आप दूसरों के साथ अपनी वस्तुएँ या सुख-सुविधाएँ साझा करते हैं तो ऐसी भौतिकता बहुत अच्छी है। सभी को भोजन, कपड़े-लत्ते और सुख-सुविधाओं की आवश्यकता होती है। यदि आप सिर्फ इतना सोच लें और साझा करने का महत्व समझ जाएँ तो आप सारे Adhyatmik उपदेशों जिन्हें अब तक आपने सीखा है तिलांजलि दे सकते हैं।
अगर आप अपनी भौतिक वस्तुएँ दूसरों के साथ साझा करना जानते हैं तो आपको (Spirituality) आध्यात्मिकता की ज़रूरत नहीं है। लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि किसी भौतिक वस्तु की आपको ज़रूरत नहीं है क्योंकि आपने चरम (Spirituality) आध्यात्मिकता को प्राप्त कर लिया है।
~स्वामी बालेंदु