अगर आपको ये कहने की ज़रूरत पड़ती है कि आप Moderate muslim हैं, यानि “नर्म” या “संयमित” मुस्लिम हैं… तो ये अपने आप में इस बात की गवाही है कि आप ये स्वीकार रहे हैं कि बाक़ी के मुस्लिम “उग्र” हैं और आप ये भी स्वीकार कर रहे हैं कि आपका धर्म दो भागों में बंटा है… ‘उग्र’ और ‘नर्म’
और इस बात का कोई पैमाना नहीं होता है कि बाक़ी की दुनिया आपको नाप सके कि आप “उग्र” हैं कि “नर्म”… ये आपकी स्वयं के लिए गढ़ी हुई परिभाषा होती है जिसे दूसरों को मानना होता है बस.. आपका स्वयं को संयमित या नर्म कहना आपकी सारी की सारी Islamic Ideology पर सवालिया निशाँ लगा देता है।
Moderate muslim सवालों से बचते क्यों हैं?


और मुझे पता है कि मुसलमानों की एक बहुत बड़ी तादाद कट्टरवादी नहीं है। वहीं कई कट्टरपंथी ऐसे भी हैं जिनका ‘दूसरों का सिर धड़ से अलग करने’ के काम से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। इसके बावजूद, मुस्लिम सोच में एक ऐसी परेशानी है जिसके बारे में बात करने से ज़्यादातर मुस्लिम बचते हैं। ऐसा नहीं है कि ये सोच केवल मुसलमानों के भीतर ही है, लेकिन आजकल यह उनके बीच ख़ासतौर पर प्रचलित है।
इस परेशानी की एक पहचान यह है कि कई मुसलमान, यहाँ तक कि कुछ धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम भी, मुस्लिम संस्कृति और समाज से जुड़ी हर चीज़ का बचाव करते हैं। इसके लिए आम तौर पर अपने गौरवशाली अतीत की दुहाई दी जाती है, साथ ही वर्तमान समय की परेशानियों के लिए किसी बड़े खलनायक को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।
कभी आपने सुना है कि “मॉडरेट हिन्दू”, “मॉडरेट बुद्धिस्ट”, “मॉडरेट पारसी”, “मॉडरेट ईसाई”?
आपके धर्म के साथ मॉडरेट जुड़ने का मतलब ही यही है
कि कहीं कुछ बहुत “सीरियस इशू” है जिसे आप सदियों से नज़रंदाज़ कर रहे हैं
और अब लोगों को बता रहे हैं कि आप ‘उग्र’ नहीं बल्कि ‘संयमित’ हैं।
थोड़ा सोचिये इस पर…
और ख़ुद को मॉडरेट कहने से पहले तो दस बार सोचिये
कि आपको क्यों ज़रूरत पड़ रही है अपने ऊपर Moderate muslim होने का टैग लगाने की
और क्या आपका स्वयं को ये कह देना आपको बाक़ी मुसलमानों से अलग कर देगा?
कौन आपकी “उग्रता” और “संयमता” को नापेगा?