आज Guru Purnima 2020 पर विशेष चर्चा
बताया जाता है कि आनंद, जो बुद्ध के भिक्षु थे और चचेरे भाई भी, बुद्ध से पूछते हैं कि “आप अगर चले गए तो संघ का मार्गदर्शन कौन करेगा?”
बुद्ध जवाब में कहते हैं कि “अगर तुम में से कोई भी ये सोचता है कि मैं ही संघ को निर्देशन देता रहूँगा या मैं ही हूँ जिसकी बात से संघ की परम्पराएं चलेंगी, तो ऐसा नहीं है.. क्योंकि बुद्ध ऐसा नहीं सोचते हैं कि उन्हें ही इस व्यवस्था को चलाना है या ये व्यवस्था उन पर निर्भर है.. मैं अपने जीवन के अंतिम चरण में पहुँच चुका हूँ। (जब बुद्ध को यह लगने लगा कि उनके शरीर का अंत निकट है तो ये बात उन्होंने अपने प्रवचन में अपने भिक्षुओं के समक्ष रखी थी)
जैसे बहुत पुरानी हो चुकी बैलगाड़ी को चलाने के लिए बहुत ज्यादा देखभाल की ज़रूरत पड़ती है, वैसे ही मेरे इस शरीर का हाल है अब इसे चलाये रखने के लिए बहुत देखभाल की ज़रूरत है, इसलिए आनंद (अप्प दीपो भव:) अब तुम अपने दीपक स्वयं बनो और स्वयं में खोजो.. किसी और बाहरी सहारे की उम्मीद न रखो.. सत्य को अपना दीप और सहारा बनने दो.. कहीं भी कोई और सहारा न ढूंढो।”
बुद्ध से पहले और बाद में आये तमाम प्रवर्तकों ने
अपने मानने वाले लोगों के पैरों के नीचे से ऐसे कभी ज़मीन नहीं खींची थी…
हर गुरु यही कह के जाता था कि वो यहीं रहेगा, या वो ऊपर आसमान में रहेगा,
या ईश्वर उनकी देखभाल करता रहेगा, या वो बस अच्छे कर्म करेगा तो ऊपर उसको सब कुछ मिलेगा।
बुद्ध को स्वयं को याद रखवाने की लालसा नहीं थी।





बुद्ध ने ऐसा कोई भी विकल्प अपने मानने वालों के समक्ष नहीं रखा। ये बात इस तरफ़ इशारा करती है कि बुद्ध के भीतर कोई भी अहंकार शेष नहीं बचा था। मरने के बाद भी “याद” रखे जाना और अपने मानने वालों को अपने ऊपर “आश्रित” रखना ये बात बताती है कि कहीं न कहीं कुछ बचा रह गया है भीतर जिसे “याद रखवाने” की लालसा बची है। बुद्ध इन सभी लालसाओं से परे निकल चुके थे। तभी वो बुद्ध हुए थे।
धम्म की दीक्षा में मुझ से सबसे पहले यही कहा गया था कि “अगर तुम ये समझते
हो कि ये जो तुम्हारे सामने मूर्ति है, इस से तुम कुछ मांगोगे तो तुमको मिल जाएगा
या तुम पूजा और प्रार्थना करके इस पर आश्रित हो सकते हो, तो अभी समय है.. यहाँ
से चले जाओ। क्योंकि यहाँ मिलेगा कुछ नहीं! सब कुछ तुम्हें ही खोजना है.. अपने ही भीतर और अपने ही प्रयास से”।
Guru Purnima 2020 पर शत-शत नमन !
ऐसा गुरु बस एक ही आया है इस संसार में जो न केवल स्वयं बुद्ध बना बल्कि उसने अपने मानने वालों के सामने भी बुद्ध हो जाने का विकल्प रख दिया। बिलकुल उसी तरह जैसे उसने स्वयं को खोजा था।
बिना किसी झूठे सहारे के उसने हम सबके आगे अप्प दीपो भव: ‘स्वयं के दीपक’ बनने का मार्ग प्रशस्त किया.. ये मार्ग कठिन है, मगर बस “यही एक मार्ग” है.. इस मार्ग के सिवा सब छलावा है और विभिन्न धार्मिक प्रवर्तकों के “अहंकार” से उपजा धोखा है। ऐसे प्रिय गुरु और मार्ग दर्शक को इस Guru Purnima पर मेरा शत-शत नमन।
~ताबिश सिद्धार्थ