अमजद फरीद साबरी का जन्म 23 दिसंबर 1976 में ग़ुलाम फ़रीद साबरी के घर करांची में हुआ था। साबरी सूफ़ीवाद के समर्थक थे और क़व्वाली गाने के लिए वे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में मशहूर थे। वे अपने पिता और चाचा द्वारा लिखीं कविताएँ भी गाते थे। उनके परिवार अविभाजित भारत के रोहतक से ताल्लुक़ रखते हैं। उनके पिता गुलाम फ़रीद साबरी का जन्म 1930 में रोहतक में हुआ था। भारत विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान के करांची में बस गया। अपने परिवार में Sabri Brothers की परंपरा को जीवित रखते हुए Amjad Sabri ने ख़ूब नाम कमाया।
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Sabri Brothers कव्वाली के रॉकस्टार कहे जाते थे
Sabri Brothers की सबसे प्रसिद्ध और यादगार कव्वालियों में ‘भर दो झोली’, ‘ताजदार-ए-हरम’ और ‘मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा’ शामिल हैं। Amjad Sabri ने यूरोप और अमेरिका में कई कार्यक्रम प्रस्तुत किए थे। Sabri Brothers को कव्वाली की आधुनिक शैली के लिए गायकी का ‘‘रॉकस्टार’’ कहा जाता था।





अमजद फ़रीद साबरी को 22 जून 2016 को करांची में गोली मार दी गयी थी। और उस वक़्त इसकी जिम्मेदारी तालिबान ने ली थी। अब उनकी हत्या के पीछे क्या राजनैतिक वजह थी? ये तो उन्हें मारने वाले ही बता सकते हैं। लेकिन उन्हें मारने की जो सबसे मुख्य वजह सामने आयी, वो थी ‘Blasphemy’। पाकिस्तान में Blasphemy का ये हाल है। कि कट्टर धार्मिक संगठन के लोग वहाँ के कानून से भी आगे चले जाते हैं।
Amjad Sabri, पाकिस्तान के मशहूर क़व्वाल थे। साल 2014 में इस्लामाबाद के हाई कोर्ट में पहले से ही उन पर एक Blasphemy का केस चल रहा था। ये Blasphemy उन पर इस वजह से लगाई गयी थी, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान के Geo टी॰वी॰ पर सुबह के वक़्त आने वाले एक प्रोग्राम में क़व्वाली गाई थी। और उस क़व्वाली में पैग़म्बर मोहम्मद के चचेरे भाई अली और बेटी फ़ातिमा की शादी का ज़िक्र था। ज़िक्र कुछ ज़्यादा डिटेल में था जो कि मौलानाओं को पसंद नहीं आया। और इसको लेकर Geo टी॰वी॰ समेत Amjad Sabri पर Blasphemy का मुक़दमा दायर कर दिया गया था।
Amjad Sabri के हत्या की ज़िम्मेदारी किसने ली थी?
तालिबान से टूट कर अलग हुए हकीमुल्ला महसूद गुट ने हत्या की जिम्मेदारी ली थी।
संगठन के आला आशिक़-ए-रसूल सैफुल्ला महसूद ने कहा था कि उसने साबरी की हत्या इसलिए कराई है
क्योंकि वह एक ‘ईशनिंदक’ था। उनके हिसाब से ईशनिंदा (Blasphemy) की सज़ा सिर्फ मौत थी
जो पाकिस्तान की अदालत शायद ही कभी उसे देती।
तो फिर सैफुल्ला महसूद ने अदालत को दरकिनार कर पहले ही अपना फैसला दे दिया।





अब एक क़व्वाली के लिए किसी पर इस तरह ‘ईशनिन्दा’ और ‘बेअदबी’
का इल्ज़ाम लगाने वाले हमारे यहां भी बहुत से हैं।
मगर इस तरह की मानसिकता को यहाँ सपोर्ट नहीं मिलता जहां सपोर्ट मिल जाता है
वहां ये अपने सबसे घिनौने रूप में दिखाई देते हैं।
एक बार एक दोस्त के कमेंट पर मैंने ख़लीफ़ा ‘उमर’ को सिर्फ़ ‘उमर’ लिख दिया था, बिना आगे ‘हज़रत’ लगाए तो इस पर कुछ लोग मुझ पर इतना ज्यादा नाराज़ हो गए की मुझ से सीधे ये कहा कि आप ‘उमर’ को गाली दे रहे हैं।
मैंने जब इस्लाम का इतिहास लिखना शुरू किया था
जिसमे मैं पैग़म्बर मोहम्मद को हमेशा ‘मोहम्मद’ ही लिखता था,
तो बड़े-बड़े सेक्युलर और मॉडरेट मुसलमानों ने मुझे सिर्फ इसलिए गाली दी और मुझे ब्लाक कर दिया,
क्योंकि इतिहास लिखने में मैं ‘मोहम्मद’ के बाद ‘सलल्लाहो-अलैह-वसल्लम’ नहीं लगाता था।
मैंने कितनों को समझाने की कोशिश की, कि अंग्रेजी में जितनी भी इस्लामिक इतिहास की किताबें मेरे पास हैं,
उन सब में ‘मोहम्मद’ को मोहम्मद ही लिखा गया है।
क्योंकि इतिहास की किताबें हर किसी धर्म के लिए होती हैं।
लेकिन जिनको नहीं मानना था, उन्होंने नहीं माना।
इनके हिसाब से ये सब Blasphemy है और अगर भारत में भी इस्लामिक कानून होता
तो ये अब तक मेरे खिलाफ़ भी केस कर चुके होते
या इतनी सी बात के लिए मार ही चुके होते।
इस्लाम में ईशनिन्दा
वैसे देखा जाए तो आज के इस्लामिक संस्करण में सब कुछ Blasphemy है। रोज़ेदार के सामने आप कुछ खा-पी लें (पाकिस्तान में एक शख्स को पुलिस वाले ने इसी बात को लेकर मारा था) जिसको गाना सुनना न पसंद हो उसके आगे आप गाना बजा दें। मतलब किसी इस्लामिक स्टेट में ऐसा सख्त रूल हो तो Blasphemy का आरोप किसी भी तरह से कहीं से भी घुमा-फ़िरा कर के लगाया जा सकता है। क्योंकि जिस ‘सच्चे’ मुसलमान को कुछ भी न पसंद हो, और आप वो कर दें तो वो हो गयी Blasphemy।
Sabri की हत्या पर घड़ियाली आँसू बहाते लोग





जबकि पाकिस्तानी में लिबरल लोग इसके खिलाफ खड़े चुके हैं क्योंकि वहाँ सबसे ज़्यादा इसी क़ानून का दुरूपयोग होता है। Blasphemy का सबसे पहला कांसेप्ट ‘ख़लीफ़ा उमर’ का ही था। मगर अभी इस इतिहास और इससे जुड़ी जानकारियां लिख दूं तो अच्छे से अच्छा मुसलमान नाराज़ हो जाएगा। और Blasphemy वाले बहुसंख्यक हैं, यहां भी और पाकिस्तान में भी। ये सारे क़व्वाली और मज़ार पर जाने को ईशनिंदा (Blasphemy) ही बोलते हैं लेकिन उस वक़्त Amjad Sabri से जुड़ी पोस्टों पर ख़ूब घड़ियाली आंसू बहा रहे थे।
मगर जिस ने उन्हें गोली मारी है उसने इनके दिल का काम किया था और ये अंदर से इसे बख़ूबी जानते और मानते हैं।
~ताबिश सिद्धार्थ